सचित्र पांडुलिपियों की जीवंत परंपरा 10-11वीं शताब्दी से शुरू हुई। पाल शासकों के अधीन लिखे और बिहार और बंगाल के कई सचित्र बौद्ध ग्रंथ अब कई संग्रहों और संग्रहालयों में हैं। पश्चिम भारत में, विशेष रूप से जैन कल्पसूत्रादि पवित्र ग्रंथों में प्राप्त चित्र ग्रंथ को सचेतन करते हैं । साथ ही चित्र में प्रयुक्त लाल, नीले और सोनेरी रंगो की चमक दर्शक को कला एवं चित्र-शैली की उद्योत परंपरा का परिचय देता है । एल.डी. इंडोलॉजी में सचित्र पांडुलिपियों का एक अच्छा संग्रह है ।
