कस्तूरभाई लालभाई

कस्तूरभाई लालभाई (1894-1980) स्वतंत्रता पूर्व और बाद के भारत के अग्रणी उद्योगपतियों में से एक थे। उनकी चतुर व्यावसायिक समझ ने लालभाई समूह को एक कपड़े कि मिल से सात मिलों के समूह के रूप में विकसित किया, इसके अलावा एक समृद्ध टाउनशिप के बीच एक बड़ा रासायनिक और डाई सामान परिसर सेट किया। हालाँकि, यह केवल उनके व्यावसायिक प्रयासों की सफलता नहीं थी जिसने उन्हें अलग किया, बल्कि यह मूल्यों और आदर्शों के एक समूह के प्रति उनका दृढ़ पालन था, जिसने उनके साथियों के बीच एक अद्वितीय स्थान बनाया।

उनकी दूरदृष्टि और नेतृत्व का एकमात्र लाभार्थी व्यवसाय जगत ही नहीं था। उन्होंने गुजरात और विशेष रूप से अहमदाबाद के शैक्षिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को समान रूप से समृद्ध किया। जो भारत के शिक्षा और अनुसंधान के कुछ सबसे प्रमुख संस्थान हैं वह उन्होंने विक्रम साराभाई के साथ अहमदाबाद में स्थापित किया । जैसे ही गुजरात विश्वविद्यालय परिसर की इमारतों पर नज़र दौड़ती है, मन एक ऐसे व्यक्ति को याद करता है, जिसने आने वाली पीढ़ियों की मानसिक शक्तियों को विकसित करने और प्रशिक्षित करने के लिए संस्थानों का निर्माण किया। और ये उनके सबसे उपयुक्त उपकथा का निर्माण करते हैं। श्री बी.वी.दोशी के शब्दों में, "वह विशालता के व्यक्ति हैं, एक उदारचेता हैं ... उनके पास भव्य, यादगार बना देने वाली एक भावना है और इसलिए संस्थानों के निर्माण और मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए सही व्यक्ति हैं। वह उन चीजों का प्रतिनिधित्व करते है जो अच्छी, भव्य और स्थायी विरासत है।"

संग्रह के बारे में:

कस्तूरभाई लालभाई रेखाचित्र संग्रह में 1800 चित्रों का संग्रह है। यह संग्रह कभी कलकत्ता में अबनिंद्रनाथ और गगनेंद्रनाथ टागोर परिवार का हिस्सा थे । इस तरह के रेखा चित्र 17वीं से 19वीं शताब्दी तक भारतीय लघु चित्रों के सबसे प्रमुख क्षेत्रीय स्कूलों का प्रतिनिधित्व करते हैं। पशु-पक्षी आदि प्राणिसमूह, देवी-देवताओं के चित्र, दरबार, नगर-परिचय, एवं धार्मिक ग्रंथों के सुशोभन इस प्रकार के चित्रों का प्रमुख विषय रहा है। तो प्रस्तुत संग्रह में पशुओं की खाल पर छिद्रित चित्र भी शामिल हैं – लघुचित्र का इस प्रकार चित्रों को बनाने और संरक्षित करने के लिए एवं पारंपरिक भारतीय लघु चित्रों की रचनात्मक प्रक्रिया को जानने का अवसर प्रदान करता है।